Rama Ekadashi 2022: रमा एकादशी पर आज जरूर पढ़ें ये कथा, माता लक्ष्मी का मिलेगा आशीर्वाद

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Rama Ekadashi 2022: आज रमा एकादशी का पावन व्रत है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु और माता पावर्ती की पूजा अर्चना करते हैं। मान्यता है कि इस दिन पूरी निष्ठा, सच्चे मन और विधि-विधान से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

रमा एकादशी का व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। माता लक्ष्मी का एक नाम रमा भी है और इस एकादशी के दिन श्रीहरि भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

रमा एकादशी व्रत कथा (Rama Ekadashi Vrat Katha)

प्राचीण समय की बात है। एक नगर में मुचुकंद नाम के एक प्रतापी राजा रहते थे। चंद्रभागा नाम की उनकी एक पुत्री थी। राजा ने अपनी बेटी का विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ कर दिया। शोभन एक समय बिना खाए नहीं रह सकता था। शोभन एक बार कार्तिक मास के महीने में अपनी पत्नी के साथ ससुराल आया, तभी रमा एकादशी व्रत पड़ा।

चंद्रभागा के गृह राज्य में सभी रमा एकादशी का नियम पूर्वक व्रत रखते थे और ऐसा ही करने के लिए शोभन से भी कहा गया। शोभन इस बात को लेकर परेशान हो गया कि वह एक पल भी भूखा नहीं रह सकता है तो वह रमा एकादशी का व्रत कैसे कर सकता है।

वह इसी परेशानी के साथ पत्नी के पास गया और उपाय बताने के लिए कहा.। चंद्रभागा ने कहा कि अगर ऐसा है तो आपको राज्य के बाहर जाना पड़ेगा, क्योंकि राज्य में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो इस व्रत नियम का पालन न करता हो। यहां तक कि इस दिन राज्य के जीव-जंतु भी भोजन नहीं करते हैं।

आखिरकार शोभन को रमा एकादशी उपवास रखना पड़ा, लेकिन पारण करने से पहले उसकी मृत्यु हो गयी। चंद्रभागा ने पति के साथ खुद को सती नहीं किया और पिता के यहां रहने लगी। उधर एकादशी व्रत के पुण्य से शोभन को अगले जन्म में मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ।

एक बार मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर पहुंचे। उन्होंने सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखते ही पहचान लिया। ब्राह्मणों को देखकर शोभन सिंहासन से उठे और पूछा कि यह सब कैसे हुआ।

तीर्थ यात्रा से लौटकर ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को यह बात बताई। चंद्रभागा बहुत खुश हुई और पति के पास जाने के लिए व्याकुल हो उठी। वह वाम ऋषि के आश्रम पहुंची। चंद्रभागा मंदरांचल पर्वत पर पति शोभन के पास पहुंची। अपने एकादशी व्रतों के पुण्य का फल शोभन को देते हुए उसके सिंहासन व राज्य को चिरकाल के लिये स्थिर कर दिया।

तभी से मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को रखता है वह ब्रह्महत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। breaking24.in इसकी पुष्टि नहीं करता है। ऐसे में किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।)

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